वह भटकता है दर-दर


वह भटकता है दर-दर
उसके लिए शाम क्या ?
सुबह क्या ?
और क्या दोपहर ??
गावों से कस्बों तक
कस्बों से शहर - शहर
हर गली हर डगर
इस घर से उस घर
उसको तो बस खाना चाहिए पेट भर
......वह भटकता है दर-दर

कभी किसी हिन्दू के द्वार पर
तो कभी किसी मुस्लिम की चौखट
पर ना वह मजहब की सोचता है
ना है उसको धर्म की फिकर
उसके लिए अल्लाह क्या ??
और क्या ईस्वर??
उसको तो बस खाना चाहिए पेट भर
.....वह भटकता है दर-दर

जून की तपती हुयी दोपहर
वह नंगे पावों करता सफ़र
दिसम्बर की कपकपाती सहर
छोटी सी चादर में खुद को लपेट कर
कभी किसी पेंड की छावों में
तो कभी खुले असमान में
किसी रोड के फुटपाथ पर
जिन्दगी को करता है बसर
उसको तो बस खाना चाहिए पेट भर
......वह भटकता है दर-दर