सोचता हूँ मैं
तेरे रूप की क्या उपमा कहूँ!!

अप्सरा कहूँ कि पद्मिनी कहूँ
कमलनी कहूँ कि म्रग्नयानी कहूँ
हंसनी कहूँ कि मोरनी कहूँ
प्रियसी कहूँ कि प्रियतमा कहूँ

तेरे रूप की क्या उपमा कहूँ!!

एषा कहूँ कि त्रप्र्ती कहूँ
सीतल कहूँ कि कोमल कहूँ
निश्छल कहूँ कि चंचल कहूँ
सुमन कहूँ कि उपवन कहूँ

तेरे रूप की क्या उपमा कहूँ!!


सलिल कहूँ कि सुगंध कहूँ
उमंग कहूँ कि तरंग कहूँ
सरिता कहूँ कि सागर कहूँ
चांदनी कहूँ कि चन्द्रमा कहूँ

तेरे रूप की क्या उपमा कहूँ!!

व्रंधावान कहूँ कि मधुवन कहूँ
बसंत श्रतु कहूँ कि सावन कहूँ
नीला अम्बर कहूँ कि सतरंगी धरा कहूँ
मनोरम संध्या कहूँ कि मनोहारी प्रात कहूँ

सोचता हूँ मैं
तेरे रूप की क्या उपमा कहूँ!!

26/11 Mumbai


मेरी यह रचना मुंबई मैं हुए २६/११ के उन सभी अमर शहीदों को समर्पित है
जिन्होंने अपनी मात्रभूमि को अपने प्राणों की आहुति दी !!

और उन तमाम शहीदों को जो आतकवाद से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए

जय हिंद !!


हम क्यूँ निभाते हैं भाईचारा ??
वो जब चलाते हैं गर्दन पे आरा

हमने लगाया जब भी गले उनको
पीठ मैं उन्होंने है खंजर मारा

हम तो भेजतें हैं अमन के फुल
बदलें में देते हैं वो खून की धारा

हम समझते हैं अपना उनको
वो कहते हैं दुश्मन है हमारा

प्रेम है जीवन आधार हमारा
नफरत है उनकी विचारधारा

हमको आता है तरश उनपर
वो समझाते है हमको बेचारा

आखिर ये बेचारगी कब तक ??
वक़्त है की कर दें वारा-न्यारा !!

मेरी यह रचना "राष्ट के प्रथम प्रधानमंत्री प. जवाहर लाल जी को समर्पित "

मेरे प्रिय भातवासियों,
मैंने इस कविता में स्वर्णिम भारत कि "कलंकित राजनीती और उन मात्रभूमि के कुपुत्रों "
का महिमामंडन किया है जो अपनी राजनितिक और शासन करने कि महत्वकांछा को पूरा करने कि लिए अपनी माँ कि पीठ कि तरह से छुपा भोपं रहे है
साथ ही मैं भगवान् से अस्तुति करूँगा कि वह इन कुपुत्रों को सदबुधि दे !!
और भारत वासियों से भी आशा कि इस गंभीर समस्या पर एकजुट होकर
इस गंदगी को मिटा देंगे !! और स्वर्णिम भारत को प्रकाशमान करेंगे !!!

जय भारत माता !!

देखो स्वर्णिम भारत है कराह रहा !!

राजनीति कि बिसात पे
हर कोई अपना दांव है लगा रहा
धर्म का कोई कर रहा शंखनाद
जाति कि किसी ने छेडी है तान
भाषा का किसी ने थमा है तीर कमान
तो कोई छेत्रवाद के झंडे है उठा रहा

देखो स्वर्णिम भारत है कराह रहा !!

कुर्सी-कुर्सी का खेल हो रहा
अंधों-कानों का मेल हो रहा
नैतिकता, आदर्श, नीति
सब धरे हुए हैं कोने में
नोटों से विधायिका का मोल हो रहा
लुका -छुपी का खेल नहीं
सदन में ही लेन-देन हो रहा
कल्लू, लल्लू, मंगू, राजू
हर कोई रंगी सपने है सजा रहा

देखो स्वर्णिम भारत है कराह रहा !!

सत्ता, सत्ता और सत्ता ही अंतिम ध्येय
हर कीमत पे सत्ता है चाह रहा
सत्ता पाने के खातिर
बेटी बेचीं , बेवी बेचीं
माँ-बाप को भी नीलाम किया
अल्लाह से कि गद्दारी
राम को भी बदनाम किया
सत्ता कि लोलुपता में
हर नीच से नीच है काम किया
कर धारण स्वेट वस्त्र ये झुंड ठगों का
देखो कैसे मात्रभूमि को चुना है रहा

देखो स्वर्णिम भारत है कराह रहा !!