मेरी यह रचना "राष्ट के प्रथम प्रधानमंत्री प. जवाहर लाल जी को समर्पित "

मेरे प्रिय भातवासियों,
मैंने इस कविता में स्वर्णिम भारत कि "कलंकित राजनीती और उन मात्रभूमि के कुपुत्रों "
का महिमामंडन किया है जो अपनी राजनितिक और शासन करने कि महत्वकांछा को पूरा करने कि लिए अपनी माँ कि पीठ कि तरह से छुपा भोपं रहे है
साथ ही मैं भगवान् से अस्तुति करूँगा कि वह इन कुपुत्रों को सदबुधि दे !!
और भारत वासियों से भी आशा कि इस गंभीर समस्या पर एकजुट होकर
इस गंदगी को मिटा देंगे !! और स्वर्णिम भारत को प्रकाशमान करेंगे !!!

जय भारत माता !!

देखो स्वर्णिम भारत है कराह रहा !!

राजनीति कि बिसात पे
हर कोई अपना दांव है लगा रहा
धर्म का कोई कर रहा शंखनाद
जाति कि किसी ने छेडी है तान
भाषा का किसी ने थमा है तीर कमान
तो कोई छेत्रवाद के झंडे है उठा रहा

देखो स्वर्णिम भारत है कराह रहा !!

कुर्सी-कुर्सी का खेल हो रहा
अंधों-कानों का मेल हो रहा
नैतिकता, आदर्श, नीति
सब धरे हुए हैं कोने में
नोटों से विधायिका का मोल हो रहा
लुका -छुपी का खेल नहीं
सदन में ही लेन-देन हो रहा
कल्लू, लल्लू, मंगू, राजू
हर कोई रंगी सपने है सजा रहा

देखो स्वर्णिम भारत है कराह रहा !!

सत्ता, सत्ता और सत्ता ही अंतिम ध्येय
हर कीमत पे सत्ता है चाह रहा
सत्ता पाने के खातिर
बेटी बेचीं , बेवी बेचीं
माँ-बाप को भी नीलाम किया
अल्लाह से कि गद्दारी
राम को भी बदनाम किया
सत्ता कि लोलुपता में
हर नीच से नीच है काम किया
कर धारण स्वेट वस्त्र ये झुंड ठगों का
देखो कैसे मात्रभूमि को चुना है रहा

देखो स्वर्णिम भारत है कराह रहा !!