एक मुददत से बैठें हैं प्यासे


एक मुददत से बैठें हैं प्यासे

हम जाम वो होंठों के पिलाते ही नहीं

दिल ये करता है भर ले उनको आगोश में

एक वो हैं कभी करीब आते ही नहीं

रोशनी हो जाये दिल की स्याह रातों में

बनकर महताब वो कभी जगमगाते ही नहीं

हुस्न पर अपने इतना हैं मगरूर वो

इश्क के सजदे में सर झुकाते ही नहीं

कोशिशें लाख की आये न उनकी याद "उदय"

यादों के साये हैं कि दिल से जाते ही नहीं

बवंडर

आज फिर मैंने एक बवंडर देखा
लहलहाते खेतों को होते बंजर देखा
उजड़ते बेजुबान बाशिंदों के घरो को,
जंगलों को काटकर बनते शहर देखा
भेड़िये को घुसते इंसान के अंदर देखा
...आज फिर मैंने एक बवंडर देखा

भाई को भाई के सिने में उतारते खंजर देखा
बाप को बेटी की उतारते इज्जत देखा
और अपनी ही माँओं को नोचते,
आवारा दरिंदों का मंजर देखा
....आज फिर मैंने एक बवंडर देखा

हकीम को जख्म में लगाते नश्तर देखा
काले कोट में छुपा खच्चर
देखा भ्रष्टता के तांडव का मंजर
देखा चौराहे पर भाषण देता,
सफेदपोश बन्दर देखा
नन्हें-नन्हें हांथों को खिलोनो की जगह
बनाते बारूद से घर देखा ....
आज फिर मैंने एक बवंडर देखा

जाती, धर्म, भेद-भाव का अंतर
देखा पंडित हो या मौलाना,
ग्रंथी या हो पादरी,
सबको उगलते जहर देखा
जुल्मों की काली रात,
आंसुओं की सहर देखी
नफरत की आंधियां,
खून का समंदर देखा
जिन्दा लाशों के ढेर,
इंसानियत का खंडहर देखा
....आज फिर मैंने एक बवंडर देखा

मांझी-ये-कश्ती

महफ़िल में हुजुर हम आयें आपकी
ज़हर दो या दो जाम मर्जी है आपकी !!

मांझी-ये-कश्ती हमने बनाया आपको
पार लगा दो या डूबा दो मर्जी है आपकी !!

खता तो नहीं की है, हमने चाहकर आपको
अब हंसा दो यल रुला दो मर्जी है आपकी !!

हसरत-ये-दिल है, जिन्दगी हो पहलू में आपके
उम्मीदे-ये-शमा जला दो या बुझा दो मर्जी है आपकी !!

चाहेंगे हम उम्र भर यूँ ही आपको
आप हमें चाहो या भुला दो मर्जी है आपकी !!

हर गम हंस के सीने से लगा लेंगे "उदय"
अब जिन्दगी दो या मौत दो मर्जी है आपकी !!

वह भटकता है दर-दर


वह भटकता है दर-दर
उसके लिए शाम क्या ?
सुबह क्या ?
और क्या दोपहर ??
गावों से कस्बों तक
कस्बों से शहर - शहर
हर गली हर डगर
इस घर से उस घर
उसको तो बस खाना चाहिए पेट भर
......वह भटकता है दर-दर

कभी किसी हिन्दू के द्वार पर
तो कभी किसी मुस्लिम की चौखट
पर ना वह मजहब की सोचता है
ना है उसको धर्म की फिकर
उसके लिए अल्लाह क्या ??
और क्या ईस्वर??
उसको तो बस खाना चाहिए पेट भर
.....वह भटकता है दर-दर

जून की तपती हुयी दोपहर
वह नंगे पावों करता सफ़र
दिसम्बर की कपकपाती सहर
छोटी सी चादर में खुद को लपेट कर
कभी किसी पेंड की छावों में
तो कभी खुले असमान में
किसी रोड के फुटपाथ पर
जिन्दगी को करता है बसर
उसको तो बस खाना चाहिए पेट भर
......वह भटकता है दर-दर

आँखें जगती हैं


हर शाम एक कसक सी दिल में होती है !
आँखें जगती हैं, और रात सोती है !!

तेरे जुल्फों से बरसात, फिर एक बार बरसती है !
सपनो की दुल्हन, फिर एक बार सजती है , संवरती है !!

अरमानों की बारात, फिर एकबार शमशान से गुजरती है !
गुजरे लम्हों की बारात, फिर चांदनी रात मुझको ठगती है !!

बिरानिया ही रह गयीं है, दिल के खंडहरों में !
देखना है कम चराग - ये - मोहबत जलती है !!

सुना है भाग्य की रेखाए "उदय" !
रेती के घरों की तरह, बनती हैं, बिगड़ती हैं !!

चाँद देखा है यारों


चाँद देखा है यारों
बस चांदनी की तलाश है !!


सूर्य तो दिख रहा है
बस उसकी तपिश उदाश है !!


दुनिया आज की तारीख में इतना बदल गयी है
की हर शख्स को खुद की तलाश है !!


चाँद देखा है यारों
बस चांदनी की तलाश है !!


चेहरे तो खिल - खिलाकर हंसते हैं
लेकिन मन उदास हैं !!


भीड़ है लोगो की चारो तरफ
फिर भी तन्हाई का अहसास है !!


बचपन से लेकर आज तक
मैं ढूँढता रहा हूँ , उसको

और आज भी उसकी तलास है
हाँ मुझे बस सुकून की तलास है !!


चाँद देखा है यारों
बस चांदनी की तलाश है !!