जाने क्यूँ ?

गुलिस्ताँ में हैं गुल ही गुल
कमी है बस सूरजमुखी की

दरिया बहे हैं लाखों इस जहाँ में
पीता कोई पानी, प्यास किसी की

संग चलते हैं कारवां के कारवां
जाने क्यूँ ? तन्हाई से दोस्ती की

भाग सका कहाँ कोई पर्छायीओं से
पर्छायीओं को कहाँ परवाह रस्सी की

ताउम्र "उदय" उसकी तलाश की
न पा सका, हारकर खुदखुशी की